Premanand Maharaj: ” वृंदावन के प्रसिद्ध ये संत लोगों को भक्ति का ऐसा सच्चा मार्ग दिखाते हैं कि उन्हें सुनने के बाद कई लोगों की डोर सीधे राधा रानी से बंध गई है. लेकिन हाल ही में एक एक महिला प्ेमानंद महा nächsten इस महिला ने प्रेमानंद महाराज से ‘सम्मान’ से ज ुड़ा सवाल पूछा था.
जब महिला ने पूछा, ‘सम्मान कैसे मिले?’
इस महिला का प्रश्न था, ‘Was ist los, सम्मान कैसे मिले? ‘ सवाल सुनते-सुनते ही प्रेमानंद महाराज बीच में Warum? Was ist los? Was ist los? ये कैसी उल्टी बुद्धि है. सम्मान चाहती हो. ये तो नर्क ले जाने वाली बात है. सम्मान चाहने वाला कभी संतुष्ट नहीं हो सकता. सम्मान चाहने वाला कभी परमार्थ का पथिक नहीं Nicht wahr. Das ist nicht alles, was ich meine, das ist alles, was ich meine है वो कभी सुखी नहीं हो सकता. इसको छोड़ो, अपमान को अमृत के समान समझो. ”
‘यहां सम्मान की धज्जियां उड़ाई जाती हैं’
प्रेमानंद महाराज आगे कहते हैं, ‘तुम सम्मान की Was ist los? भगवान की खोज करो, तुम्हारा सम्मान ही सम्मा न हो जाएगा. सम्मान की खोज करोगे तो फिर ये तो नर्क पहुंचा. द Ja. रोग-द्वेष बढ़ जाएगा, अंदर से असंतुष्ट रहोगे. में बैठी हुई है कि सम्मान चाहिए. आपने गलत जगह सवाल पूछ लिया. यहां सम्मान की धज्जियां उड़ाई जाती हैं और अपमान का आदर किया जाता है. ये अध्यात्म का स्थान है. अध्यात्म में सम्मान का आदर नहीं. ‘
देहाभिमान के कारण सम्मान से प्रेम है
इसपर फिर उसने पूछा जाता है, ‘पर अपमान में बुरा क ्यों लगता है?’ इसपर प्रेमानंद महाराज कहते हैं, देहाभिमान Nicht wahr. “
Schlagworte: Dharma-Guru, Premanand Maharaj
ERSTVERÖFFENTLICHT: 28. Oktober 2024, 16:54 IST