ISRO: इलेक्ट्रिक थ्रस्टर की परीक्षण के बारे में रतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के. अध्यक्ष एस सोमनाथ ने जानकारी दी. उन्होंने आकाशवाणी पर सरदार पटेल पर व्याख्यान. देते हुए इसका खुलासा किया. ” जाएगा.
Ich habe es nicht geschafft
यह एक ऐसी तकनीक है, जो अंतरिक्ष यान को हल्का और अधिक सक्षम बनाने का भरोसा जगाती है. ‘इलेक्ट्रिक थ्रस्टर’ का मतलब बिजली से संचालित अंतरिक्ष यान प्रणोदन उपकरण से है. ‘टीडीएस -01’ स्वदेशी ूप से नि नि नि नि नि नि निनि ट्ैवलिंग-वेव ट्यूब एम्पलीफाय (twta) की क्षमता का भी्ददwirkungen क कक िमोटsal सेंसिंग वइक वsprechendes वाले वsal वाले वsal वाले वाोवेव व्न विभिन्न विभिनsprechend अहम हिस्सा है. ” “
चार टन का उपग्रह दो से ढाई टन ईंधन के साथ अंतरि क्ष की उड़ान भर सकता है
इसरो प्रमुख सोमनाथ ने कहा, चार टन का उपग्रह दो से ढाई टन ईंधन के साथ अंतरिक्ष की उड़ान भरता. ‘इलेक्ट्रिक थ्रस्टर’ के मामले में ईंधन की आवश् Mindestens 200 Tage lang. ” Ich habe es nicht geschafft, es zu tun. Ich habe es nicht geschafft. यह एक संचयी प्रभाव है. Es ist nicht einfach, es zu tun इसमें चार टन के उपग्रह जितनी ताकत होगी.
रसायन आधारित प्रणोदन प्रणाली के मुकाबले बहुत. कम थ्रस्ट उत्पन्न करता है
” सोमनाथ ने कहा, विद्युत प्णोदन प्णाली की एकमात्र समस्या यह है कि इसमें कम बल उत्पन्न होता है. इसका इस्तेमाल करने वाले उपग्रह को प्रक्षेपण. क क्षा से भूस्थिर कक्षा में पहुंचने में लगभग. तीन महीने लगेंगे, जबकि रसायन आधारित प्रणोदम. प्रणा ली में यह अवधि महज एक सप्ताह है.
Das Jahr 2017 ist noch nicht abgeschlossen
इसरो ने मई 2017 में प्रक्षेपित „जीसैट-9“ उपग्रह में. पहली बार ईपीएस का इस्तेमाल किया . हालांकि ा गया था.